यादों का झरोखा खुला ही था अभी
सर्द हवा ने झझकोर दिया
कुछ यादें ताज़ा हुई
कुछ ज़ख्म उभर आए
यादों के परिंदों ने उडाने भरी
वोह एक शाख से दूसरी शाख बैठ आए
जिंदगी की शाम आयी
यादों के परिंदे अपने आशियाने को लौट आए
Sunday, May 31, 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment