Thursday, May 14, 2009

बस्तर आदिवासियों के गढ़ में बसेरा

आपको पहले यह बता दूँ की जगदलपुर भारत के उस पिछडे इलाके में है जहाँ पर लोंगो को आना बिल्कुल भी सुहाता वैसे यह बस्तर नाम के इलाके में आता है । बस्तर यानी पूर्णत पिछड़ा नक्सली समस्या से ग्रसित . मगर यहाँ जो है वोह कहीं नही - प्रकृतिकी अनुपम छटा । रमणीक स्थल एशिया का सबसे बड़ा जलप्रपात - चित्रकूट । अंधी मछलियों की गुफा - कोटमसर । साथ ही इसका एक इसके समीप एक और जल प्रपात तिरथ्गढ़ । पूरी तरह आदिवासी सभ्यता से परिपूर्ण यह इलाका अपने पिछडे पण की कहानी ख़ुद ही कह देता है । बस्तर एक समय में क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत के केरला प्रदेश के बराबर होने का दर्जा रखता था किंतु सवतंत्रता पश्चात् पहली बार हुए इस प्रयास में की इसे कुछ और टुकडों में बांटकर यानि कई जिलों में बांटकर तीव्रता से इसका विकास किया जाए के नाम पर इसे तीन और जिलों में बाँट दिया गया। कहानी का ढर्रा वही पुराना रहा पहेले एक अधिकारी के द्वारा इसका मानमर्दन किया जाता था तो अब तीन तीन अधिकारीयों के द्वारा । पहेले एक नेता ही काफी थे अब तो चोरों की मंडली और बढ़ गयी । कोई आदिवासी बनकर लूट रहा है तो कोई आदिवासियों को लूट रहा है । रही सही कसर नक्सलियों ने पूरी कर दी - वे तो इन दोनों को लूट रहें । बीच का समाज जिसे कमजोर मध्यम वर्गीय निशब्द और न जाने क्या क्या कहा जा सकता है मूक तमाशबीन बना हुआ है ।

इनको समझ नहीं आता किधर जायें - और जायें तो जायें कहाँ । आइये देंखे कुछ रोचक नज़ारें -

आदिवासी हितैषी नेता जो आदिवासी उत्थान की बात करते नहीं थकते वोह कैसे फंसते हैं देखें - एक नेताजी जो आदिवासी भाइयों की लडाई अकेले दम पर लड़ने की बात करते और हर जगह आदिवासी को प्रमुखता देते एक बार अपने पराक्रम से एक भाई - वही अपने आदिवासी भाई को मुख्य चिकत्सा अधिकारी बनवा दिया । सारी जनता को यह फरमान दे दिया गया की आदिवासी किसी से कम नहीं इसका कोई सानी नहीं इसकी पढाई में कोई खोट कोई कमी नही भले ही यह सरकारी स्कूल में ही क्यों न पढ़ा हो। वगैरह वगैरह । मगर जब ख़ुद बीमार हुए तो मालूम हैं कहाँ भागे - लन्दन । पूछा गया अपने डॉ से क्यां नहीं इलाज कराया तोह कह दिया उसे आता ही क्या हैं अब आप समझें जनता का क्या हाल होतो होगा .

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