Thursday, July 9, 2009

वसीयत


वसीयत

लम्बी बीमारी में पड़ने पर पत्नी ने बीमार पति से कहा - "डार्लिंग, तुम अपना कारोबार, घर की वसीयत, कार आदि मेरे नाम कर जाना । कुछ दिनों के बाद पति महोदय स्वर्ग सिधार गए और वसीयत पत्नी के नाम कर गए । जिसमे उन्होंने लिखा -

प्रिये ! मैंने तुम्हारे कहे अनुसार अपने कारोबार की वसीयत तुम्हारे नाम कर दी है इसमे मैंने अपने दोस्त अनिल से दस लाख और बैंक से पाँच लाख उधार लेकर लगाये थे । अगले माह वे तुमसे पैसे लेने आयेंगे मैंने वसीयत की एक कॉपी उन्हें भी भेज दी है । तुम कंपनी को बेचने की कोशिश मत करना क्योंकि उसमे हमारा शेयर केवल १० प्रतिशत का है जिसके एवज में तुम्हे दो लाख रुपये से ज्यादा नहीं मिलेगा । अपना बंगला जिसमे हम रह रहे हैं उसे भी बेचने की कोशिश मत करना क्योंकि वो रामलाल का है । उसे में हर माह ऑफिस से किराया दिया करता था । बंगले के कागजात जो तुम्हारे पास हैं वे सब नकली हैं और हाँ कार के चरों पहिये निकलवा कर उस्मान भाई को दे देना ये सब उनकी दूकान का सामन है । कार का इंजन इंश्योरेंस कंपनी वाले आकर ले जायेंगे ।

तुम्हारा और सिर्फ़ तुम्हारा

पति


No comments:

Post a Comment