Thursday, July 9, 2009

यादों का झरोखा


यादों का झरोखा खुला ही था अभी

सर्द हवा ने झझकोर दिया

कुछ यादें ताज़ा हुईं

कुछ ज़ख्म उभर आए

यादों के परिंदों ने उडाने भरीं

वो एक शाख SE दूसरी शाख बैठ आए

जिंदगी की शाम आयी

यादों के परिंदे अपने आशियाने को लौट आए

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