Sunday, May 31, 2009

में तुमसे कुछ मांगता हूँ

तुम मेरे

तुम्हारी धड़कने मेरी

तुम्हारा दिल मेरा

तुम्हारी चाहत मेरी

तुम्हारी आरजू मेरी

तुम्हारे सपने मेरे

तुम्हारा एहसास मेरा

तुम दोस्त मेरे

तुम हबीब मेरे

तुम करीब मेरे

तुम्हारी आवाज़ मेरी

तुम्हारी जिद मेरी

सब कुछ मेरा

फिर भी मैं

हमेश तुमसे मांगता हूँ !

कुछ दो लाइन वाली कवितायें

१.मांगी यह दुआ - उठा ले इस जहाँ से
तो छार गज ज़मीन के नीचे दफ्नावा दिया
(वाह रे तेरी खुदाई )

२.वक्त ने तेरा बचपन जवानी में बदला
जवानी से दिल नहीं भरा तो उसको बुढापे में बदला

यादों का झरोखा

यादों का झरोखा खुला ही था अभी
सर्द हवा ने झझकोर दिया
कुछ यादें ताज़ा हुई
कुछ ज़ख्म उभर आए
यादों के परिंदों ने उडाने भरी
वोह एक शाख से दूसरी शाख बैठ आए
जिंदगी की शाम आयी
यादों के परिंदे अपने आशियाने को लौट आए

जिंदगी के अनजान कलर

जिस तरह इस जहाँ में

अम्बर सदा नीला होगा

उसी तरह तेरा दिया हुआ

हर ज़ख्म बार बार हरा होगा

मेरे जिस्म में बहने वाले खून की तरह

तेरी मांग में सिन्दूर लाल भरा होगा

मेरा नाम जब भी तेरे नाम के साथ लिया जाएगा

तेरा चेहरा लाल पीला होगा

मेरा दिल उजालों में ढूंढ़ना , क्योंकि

वोह जला है जाने कितनी बार उसका रंग कला ही होगा

मेरी दागे जिंदगी को जिससे तुम ढकोगे

उस कफ़न का रंग सफ़ेद होगा

जिंदगी के अनजान कलर

मेरी पहली कविता

जब मैं क्लास १० वी में था तब मैंने यह कविता लिखी थी :

सूरज की मद्धम किरणों का जाल
प्रकृति हो रही निहाल
पेड़ पर पुलकित हो रहा , फूल संग डाल
कोयल की मीठी कूक
मिटा देती है संगीत की भूख
चिडियों का चहकता झुंड विहार
कर रहा सवागात्कार
जिसका संपूर्ण जगत करता इंतज़ार
लो आ गया प्यारा बसंत बहार


Thursday, May 14, 2009

बस्तर आदिवासियों के गढ़ में बसेरा

आपको पहले यह बता दूँ की जगदलपुर भारत के उस पिछडे इलाके में है जहाँ पर लोंगो को आना बिल्कुल भी सुहाता वैसे यह बस्तर नाम के इलाके में आता है । बस्तर यानी पूर्णत पिछड़ा नक्सली समस्या से ग्रसित . मगर यहाँ जो है वोह कहीं नही - प्रकृतिकी अनुपम छटा । रमणीक स्थल एशिया का सबसे बड़ा जलप्रपात - चित्रकूट । अंधी मछलियों की गुफा - कोटमसर । साथ ही इसका एक इसके समीप एक और जल प्रपात तिरथ्गढ़ । पूरी तरह आदिवासी सभ्यता से परिपूर्ण यह इलाका अपने पिछडे पण की कहानी ख़ुद ही कह देता है । बस्तर एक समय में क्षेत्रफल की दृष्टि से भारत के केरला प्रदेश के बराबर होने का दर्जा रखता था किंतु सवतंत्रता पश्चात् पहली बार हुए इस प्रयास में की इसे कुछ और टुकडों में बांटकर यानि कई जिलों में बांटकर तीव्रता से इसका विकास किया जाए के नाम पर इसे तीन और जिलों में बाँट दिया गया। कहानी का ढर्रा वही पुराना रहा पहेले एक अधिकारी के द्वारा इसका मानमर्दन किया जाता था तो अब तीन तीन अधिकारीयों के द्वारा । पहेले एक नेता ही काफी थे अब तो चोरों की मंडली और बढ़ गयी । कोई आदिवासी बनकर लूट रहा है तो कोई आदिवासियों को लूट रहा है । रही सही कसर नक्सलियों ने पूरी कर दी - वे तो इन दोनों को लूट रहें । बीच का समाज जिसे कमजोर मध्यम वर्गीय निशब्द और न जाने क्या क्या कहा जा सकता है मूक तमाशबीन बना हुआ है ।

इनको समझ नहीं आता किधर जायें - और जायें तो जायें कहाँ । आइये देंखे कुछ रोचक नज़ारें -

आदिवासी हितैषी नेता जो आदिवासी उत्थान की बात करते नहीं थकते वोह कैसे फंसते हैं देखें - एक नेताजी जो आदिवासी भाइयों की लडाई अकेले दम पर लड़ने की बात करते और हर जगह आदिवासी को प्रमुखता देते एक बार अपने पराक्रम से एक भाई - वही अपने आदिवासी भाई को मुख्य चिकत्सा अधिकारी बनवा दिया । सारी जनता को यह फरमान दे दिया गया की आदिवासी किसी से कम नहीं इसका कोई सानी नहीं इसकी पढाई में कोई खोट कोई कमी नही भले ही यह सरकारी स्कूल में ही क्यों न पढ़ा हो। वगैरह वगैरह । मगर जब ख़ुद बीमार हुए तो मालूम हैं कहाँ भागे - लन्दन । पूछा गया अपने डॉ से क्यां नहीं इलाज कराया तोह कह दिया उसे आता ही क्या हैं अब आप समझें जनता का क्या हाल होतो होगा .

मेरा पहेला ब्लॉग


ये मेरा पहेला ब्लॉग है। टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग टेस्टिंग ब्लॉग.